वीर रस किवता | Veer Ras Kavita
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वीर रस किवता | Veer Ras Kavita By Gyani Pandit - October 5, 2017
Veer Ras Kavita
वीर रस किवता – Veer Ras Kavita Veer Ras Kavita 1 कब बाधाये रोक सकी है हम आज़ादी के परवानो की हमको कब बाधाये रोक सकी है हम आज़ादी के परवानो की न तूफ़ान भी रोक सका हम लड़ कर जीने वालो को हम िगर� गे , िफर उठ कर लड़� गे ज़�मो को खाए सीने पर कब दीवारे भी रोक सकी है शमा म� जलने वाले परवानो को गौर ज़रा से सु न ले दु�मन
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पिरवत�न एक िदन हम लाय� गे ये हमले , थ�पड़ जूत� से हमको पथ से न भटका पाएं गे ये ओछी, छोटी हरकत करके हमारी िह�मत तु म और बढ़ाते हो िवनाश काले िवपरीत बु �ी कहावत तु म चिरताथ� कर जाते हो जब लहर उठे गी जनता म� तु म लोग कभी न बच पाओगे दे ख �प रौद्र तु म जनता का तु म भ्र�ट सब नतम�तक हो जाओगे ~ रिव
Veer Ras Kavita 2 अपना डर जीत ले घनी अँ धेरी रात हो, और ते रे ना कोई साथ हो मु मिकन है िक तु डर भी जाय, जब अपना साया तु झे डराए एक पल के िलए तु कुछ सोच ले , पीछे मु ड के भी दे ख ले अपना डर जीत ले , अपना डर जीत ले जब बात कुछ नया करने की हो, नए �े तर् म� मु काम हािसल करने की हो सम�या का समाधान ढूंढने की हो, या कौशल नया सीखने की हो मु मिकन है िक ते रे पै र थम जाय, अिनि�चतता के बादल तु झे डराए शु �आत से पहले अ�यास कर ले , अ�ानता अपनी थोड़ी दरू कर ले अपना डर जीत ले , आपना डर जीत ले पढ़ाई प्राथिमक शाला या उ�च िव�ालय म� हो, या िफर महािव�ालय म� हो घड़ी परी�ा की जब आ जाय, �याकुल मन जब तु झे सताए पिरणाम की िचं ता भु ला दे , �यान िसफ� पढ़ाई पर लगा दे पढ़कर बु द्िध के भीत ले , अपनी जीत की प�की त�वीर खींच ले अपना डर जीत ले , अपना डर जीत ले
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Veer Ras Kavita 3 वीर सिलल कण हँ ,ू या पारावार हँ ू म� �वयं छाया, �वयं आधार हँ ू म� सच है , िवपि� जब आती है , कायर को ही दहलाती है , सूरमा नहीं िवचिलत होते , �ण एक नहीं धीरज खोते , िव�न� को गले लगाते ह� , काँट� म� राह बनाते ह� । मुँ ह से न कभी उफ़ कहते ह� , सं कट का चरण न गहते ह� , जो आ पड़ता सब सहते ह� , उ�ोग – िनरत िनत रहते ह� , शूल� का मूल नसाते ह� , बढ़ खु द िवपि� पर छाते ह� । है कौन िव�न ऐसा जग म� , िटक सके आदमी के मग म� ? ख़म ठ�क ठे लता है जब नर पव�त के जाते पाँ व उखड़, मानव जब जोर लगाता है , प�थर पानी बन जाता है । गु न बड़े एक से एक प्रखर, ह� िछपे मानव� के भीतर, मे हँदी म� जै सी लाली हो, वित�का – बीच उिजयाली हो, ब�ी जो नहीं जलाता है , रोशनी नहीं वह पाता है । ~ रामधारी
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Veer Ras Kavita 4 हाँ म� इस दे श का वासी हूँ हाँ म� इस दे श का वासी हँ ,ू इस माटी का क़ज़� चु काऊंगा जीने का दम रखता हँ ,ू तो इस के िलए मरकर भी िदखलाऊंगा ।। नज़र उठा के दे खना, ऐ दु�मन मे रे दे श को म�ँगा म� ज�र पर… तु झे मार कर हीं म�ँगा ।। कसम मु झे इस माटी की, कुछ ऐसा म� कर जाऊंगा हाँ म� इस दे श का वासी हँ ,ू इस माटी का क़ज़� चु काऊंगा ।। आिशक़ तु झे िमले ह�गे बहुत, पर म� ऐसा कहलाऊंगा सनम होगा मे रा वतन और म� दीवाना कहलाऊंगा ।। माया म� फंसकर तो मरता हीं है हर कोई पर ितरं गे को कफ़न बना कर म� शहीद कहलाऊंगा ।। हाँ इस दे श का वासी हँ ,ू इस माटी का क़ज़� चु काऊंगा । मे रे हौसले न तोड़ पाओगे तु म, �य�िक मे री शहादत हीं अब मे रा धम� है ।। सीमा पर डटकर खड़ा हँ ,ू �य�िक ये मे रा वतन है ऐ मे रे दे श के नौजवान� अब आं स ू न बहाओ तु म ।। से नािनय� की शाहदत का अब कज� चु काओ तु म हािसल करो िव�वास तु म, करो दे श के दद� का एहसास तु म ।। सपना हो िह�द का सच, दु�मन� का करो िवनाश तु म उठो तु म भी और मे रे साथ कहो, कुछ ऐसा म� भी कर जाऊंगा ।। हाँ इस दे श का वासी हँ ,ू इस माटी का क़ज़� चु काऊंगा ऐ दे श के दु�मन� ठहर जाओ…. सं भल जाओ ।। म� इस दे श का वासी हँ ,ू अब चु प नहीं रह जाऊंगा ू ा ।। आं च आई मे रे दे श पर तो खून म� बहा दं ग �य�िक अब बहुत हुआ, अब म� चु प नहीं रह जाऊंगा हाँ इस दे श का वासी हँ ,ू इस माटी का क़ज़� चु काऊंगा ।। खून खौलता है मे रा, जब वतन पर कोई आं च आती है ू ा, िफर िदल से आवाज आती है ।। कतरा कतरा बहा दं ग इस माटी का बे टा हँ ू म� , इस माटी म� ही िमल जाऊंगा आँ ख उठा के दे खे कोई, सबको मार िगराऊंगा ।। भारत का म� वासी हँ ,ू अब चु प नहीं रह पाउँ गा अब चु प नहीं रह पाउँ गा, अब चु प नहीं रह पाउँ गा ।।
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